Introduction in Hindi
भवानी भारती-एक परिचय
भवानी भारती महर्षि अरविन्द द्वारा रचित एक लघु कविता है। इस कविता की रचना सम्भवतः 1904 से 1908 के मध्य की गयी। यह कविता महर्षि अरविन्द द्वारा रचित एकमात्र संस्कृत कविता है। वास्तव में यह कविता देशभक्ति से ओतप्रोत 99 श्लोकों में हैं। इन श्लोकों की रचना इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा और उपजाति छन्द में की गयी है। प्रारम्भ में जब इस कविता को महर्षि अरविन्द ने लिखा तो इसका कोई भी शीर्षक निर्धारित नहीं किया क्योंकि इस कविता को लिखने के बाद उसे फिर से देखने का अवसर ही नहीं मिला। कविता लेखन के तुरन्त बाद कलकत्ता पुलिस के द्वारा 1908 में महर्षि अरविन्द को जेल में डाल दिया गया और उनकी इस कविता को जब्त कर लिया गया। 1985 ई में श्रीअरविन्द आश्रम ने इस कविता को पुनः प्राप्त किया और भवानी भारती के नाम से प्रकाशित कराया।
इस अवसर पर इस कविता के सन्दर्भ में कुछ कहना उपयुक्त होगा। जिस समय समस्त भारतीय अपने सांसारिक सुखों का उपभोग करने में व्यस्त थे। उस समय हमारी भारत माता को विदेशियों ने अपने क्रूर हाथों से जकड़ रखा था। ये विदेशी हमारी भारत माता का रक्त पी रहे थे। यहाँ पर कवि के कहने का तात्पर्य है कि भारत में रहने वाली प्रत्येक जाति अनुभव करने लगी थी कि इस परिस्थिति में वह अपनी भारत माता की सहायता करने में असमर्थ है फिर भी वे सब चैन की नींद सो रहे हैं। उसी समय कवि को उसकी अन्तरात्मा की आवाज सुनाई पड़ी। उसकी नींद उचट गयी। अचानक वह देखता है कि भारत माता काली के रूप में उसके पीछे खड़ी है।
यहाँ पर उपस्थित काली का वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि काली माँ के गले में नरमुण्डों की माला पड़ी है, उसकी कमर में मानवों की नरमुण्डों की जंजीर पड़ी है, वह भूख से तड़प रही है, वह असहाय अवस्था में है, वह डरी हुयी है, वह नग्नावस्था में दृष्टिगोचर है। वह पूरी तरह से कालिमा से भरी हुई है। उसके केश उसकी पीठ पर बिखरे हुये हैं। वह डरावनी सी दिख रही थी। उसकी आवाज़ में बिजली जैसी कड़क थी। उसका डरावना स्वरूप यह बता रहा था कि वह भारत माता है। यह उन बच्चों की माँ है जो जीवन -मरण से सर्वथा अनभिज्ञ हैं। वह उनकी रक्षा करने के लिये अपने बच्चों का आह्वाहन करती है। वह उन्हें उनके गौरवशाली अतीत के प्रति जागरूक करती है। वह उन्हें बताती है कि भारत देश किसी समय हजारों सूर्य की चमक से इस धरती पर चमक रहा था ऋषियों के ज्ञान और तपस्या से पवित्र था। ऐसे वीर सन्तानों से परिपूर्ण थी जिन्होंने अपने शत्रुओं के रक्त से इस धरती को सींचा था। आज वही भारत माता बहुत दुखी है कि उसकी सन्तानें आज कायर बन गयीं है आज वही भारत माता अपनी सन्तानों को नापसंद करती है और उन्हें पहले की तरह जागरूक बनने और संघर्ष करने के लिये कहती है।अपनी माँ की यह आवाज सुन कर कवि अपना घर-बार रिश्ते नाते सब कुछ छोड़कर निकल पड़ता है। वह देखता है कि उसकी माँ शक्तिशाली और निर्दयी शत्रुओं से घिरी हुयी है, वे अपने बच्चों को पालने के लिये भारत माँ का खून चूस रहे हैं, वे बहुत विशाल और डरावने दिखते हैं, वे अपनी शक्ति के घमंड से भरे हुये हैं, वे सत्य के विरोधी और असत्य के समर्थक हैं, यह दृश्य देखकर कवि का हृदय क्रोध की अग्नि से जलने लगता है उसी समय माँ उसके सामने प्रकट होती है। वह अँधेरी रात्रि के समान डरी हुयी है, उसकी आवाज से धरती हिल उठती है, समुद्र में विक्षोभ होता है, स्वर्ग में उसकी आवाज से बिजली जैसी कौंध जाती है| वह क्रोध से जलने लगती है। क्रोधावेश में वह अपने शस्त्रों को उठाती है। उसके धनुष से अग्नि निकल रही है। दहाड़ते हुये वह युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं पर टूट पड़ती है। सम्पूर्ण धरती रक्त से भर जाती है। तभी कवि देखता है कि उगता हुआ सूरज अपनी चमक से अंधकार को काटता हुआ चमक रहा है। दूर पूर्व दिशा में सफ़ेद चमकती हुयी किरण किसी स्त्री के रूप में दिखाई दे रही है। उत्साह, चमक एवं आशा की किरण तथा हजारों सूर्यों का प्रकाश अपने प्रकाश से प्रकाशित कर रहा है। सभी देव वहाँ उपस्थित हैं| उस भारत माता की प्रशंसा के गीत गा रहे हैं, चिड़ियाँ फिर से चहचहाने लगीं हैं, सभी लोग उसके सामने उसकी प्रशंसा के गीत गाने लगे। हिमालय पर योगियों ने फिर से ध्यान करना शुरू कर दिया है, प्रसन्नता से उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। आर्यों की माँ भारती, पालनकर्त्री ,परमसत्ता, दैवीशक्ति की सभी प्रार्थना करते हैं। वे उसकी प्रार्थना काली के समान दयावान अन्नपूर्णा, प्रेम की अधिष्ठात्री राधा के रूप में सावित्री के रूप में, दशभुजाधारी दुर्गा के रूप में तथा असीम शक्ति से परिपूर्ण हजारों भुजा वाली माँ के रूप में करते हैं। ऐसी स्थिति में कवि को जंगल में वेदों की ध्वनि सुनाई पड़ती है जैसा कि प्राचीन समय में होता था। आज साक्षात् लक्ष्मी स्वयं अपनी मधुर मुस्कान सहित सारे भारतीयों के साथ उपस्थित हैं। आज सारा संसार माँ के साथ है और सभी उस माँ भारती के गीत गा रहे हैं। हे प्रीति, दया,धैर्य, अदम्यशौर्य, श्रद्धा,क्षमा, विविध विद्याओं को जानने वाली अनन्तरूपा देवी तुम प्रसन्न हो और भारत के जन-जन के मन में तुम स्थायी रूप से निवास करो। हे माँ तुम अपने तेज से यहाँ की समस्त नदियों और हिमालय को प्रकाशित कर दो, हे अजर-अमर चिर-कीर्ति शालिनी, महिमामयी प्रतापिनी माँ तुम इस आर्यभूमि भारत में हम सब के कल्याण के लिये यहीं पर निवास करो और हमें शुभ आशीर्वाद प्रदान करो । हे माँ भवानी भारती तुम्हारी जय हो।
Introduction (English)
Bhavani Bharati is the only Sanskrit poem composed by Sri Aurobindo. He wrote it sometime between 1904 and 1908. The manuscript of this poem was confiscated by the Calcutta police in May 1908. This was recovered and published by the Sri Aurobindo Ashram in 1985.
The poem is patriotic in nature and contains 99 verses in the Upajati, Indravajra and Upendravajra metres. From the point of view of national integration this poem occupies an important place. The story runs as follows.
While Indians are sleeping happily and enjoying worldly pleasures their Motherland India is being oppressed by Titans who are sucking Her life-blood. The poet, who represents the whole race, develops a feeling of humiliation and sense of guilt that not only has he been unable to help Mother India in this dire situation but has been sleeping happily.
At this time he hears an inner call. His sleep is disturbed by the touch of a dreadful hand. He sees Mother India standing before him in the shape of Kali: a garland of human bones round Her neck; a chain of human skulls on Her waist; scars of Titan lashes on Her back. She is hungry. She is poor. She is fearsome. She is naked. She is dark. Her hair dangles on Her back and She looks dreadful. Her voice is like thunder. This dreadful dark figure declares that She is Mother India, the Mother of the beloved children of God who are invincible in the face of Fate or Time or Death. She calls these children to protect Her. She makes them aware of their glorious past. She says that once India shone on the earth like a thousand suns because of the purified strength, knowledge and severe austerities of the Rishis and because of the great heroes who enjoyed smearing the blood of their enemies on their body and could not tolerate any opposition from their foe. But She feels sorry for the pitiful and cowardly nature of Her present children. She berates them and calls them to arise and strive to enrich her.
On hearing this clarion call of the Mother, the poet leaves his house, possessions and kinsmen and goes out. Then he sees the Mother surrounded by Titans. She is oppressed by them. The Titans are nourishing their offspring by sucking Her blood. They are huge and vile in their appearance. They are inflated with the pride of their strength. They are unrighteous and boasting of righteousness. On seeing this the poet’s heart burns with an undying wrath. Then the dreadful Mother comes to his side. She is formidable like night. The earth shakes, the sea trembles and heaven thunders with the awful violence of Her words. Her angry looks engulf the creation with a deluge of fire. She lifts her weapon, a fire-hurling bow, and rushes on the fearsome Titans, roaring in battle. The land is flooded with blood.
The poet then sees a rising sun shedding a ruddy glow in heaven repelling darkness and piercing the adversary with arrow-like beams. He also sees far in the north a white light in the form of a woman—gracious, delightful, with a radiance of twenty million dazzling suns. Then the enraptured Gods, of luminous realms, sing Her praises; the birds start chirping; men prostrate themselves before Her. Himalayan Yogis, steadfast in meditation, sing Her praises with joy.
All pray to Her, She being Omnipotent, Terrible, Mighty, Compassionate, the Preserver, the Primeval Goddess, the Supreme Power, the Mother of the Aryans, Bharati. They pray to Her as Kali, the utterly ruthless one; Annapurna, the merciful and gracious one; Radha, the incarnation of love; Savitri, the radiant one; the ten-armed Durga; the thousand-armed Mother of Unthinkable energy. With this the poet hears the chanting of the Veda in the forest, as in ancient times, and sees the resplendent Lakshmi with a smile on her lips residing permanently with the Indians. The whole world hastens to Her, praising this gracious and awe-inspiring Mother, the fulfiller of mighty vows. They pray to her by singing Or infinite in thy forms, thou art contentment, compassion, patience and indomi¬table heroism, faith and endurance and knowledge of every kind. Be gracious, noble Goddess; dwell long in the hearts of the Indian people!
Illumining these rivers and mountains with a gentle lustre, be firmly established in the Aryan country. Abide forever gracious in this land, O Mighty One, for the good of the world.
Dr. Sampadananda Mishra
Rules & Regulations
- The poem has 99 verses.
- To read the verses, click on this link: https://drive.google.com/open?id=1vkW5EwCmn2bsXr7fha5uxj79DeOWuvND
- For an understanding of the purity of pronunciation of the verses, click on this link: https://drive.google.com/file/d/1-_MKkMj0JJIk35d0MEnY75LF63m6nT5Y/view
- Participants are allowed to select verses of their choice for reciting in the event.
Category 1 GRADES- IV, V & VI
Event- Sukanthabharan – Recitation * Recitation of any 3 Shlokas
- Number of participants: 2
- Music is not allowed.
- Maximum time: 5 minutes
- The participant will explain the meaning of any one shloka recited by him/her.
- The participant should dress up in white Indian attire.
Category 2 GRADES- VII, VIII & IX – Three Events
Event A) Sukanthabharan – Recitation
* Recitation of any 5 Shlokas
- Number of participants: 2
- Music is not allowed.
- Maximum time: 8 minutes
- The participant will explain the meaning of any one shloka recited by him/her.
- The participant should dress up in white Indian attire.
Event B) Bhavabhivyakti – Role play
- No. of participants: 1
- Editing is not allowed.
- The video should be recorded in landscape mode.
- Maximum time: 2 minutes
- Role play should depict a child’s perception of any verse or verses of the poem.
Event C) Swamatam- Speech
The speech may be based on the child’s view of the poem and its influence on him/her OR his/her feelings while reading the poem OR the relevance of the poem for the present generation.
- No. of participants: 1
- Maximum time: 2 minutes
- The participant should dress up in white Indian attire.
Visit bhavanibharati.in/ or download the Bhavani app from google/IOS play store by the Vande Mataram Library Trust
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